Friday 10 October 2014

India BMC chief assures to clear dues of conservancy workers

 India BMC chief assures to clear dues of conservancy workers

Read more at: http://news.oneindia.in/2007/07/10/bmc-chief-assures-to-clear-dues-of-conservancy-workers-1184160665.html

Mumbai, Jul 10 (UNI) The agitating members of 'Kachra Vahatuk Shramik Sangh' have postponed their plan to hold their agitation over non-payment of salaries after Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) Chief Jairaj Phatak assured them that he would consider their demands. The agitators had earlier demonstrated in front of Grant Road station in south central Mumbai and threatened to go to the Commissioner's house to have dinner to press for their pending demands. Ganeral Secretary of the Sangh, Milind Ranade said Mr Phatak had decided to clear all the dues of the contractual conservancy workers by paying them Rs 127 per day as wages as per the terms of the contract. According to the 1,200 agitators, they are being paid Rs 1,800 to Rs 2,400 as against the promised amount of Rs 3,937 per month.

Read more at: http://news.oneindia.in/2007/07/10/bmc-chief-assures-to-clear-dues-of-conservancy-workers-1184160665.html

BMC objects to conservancy staff's '˜juta'campaign




The conservancy staff brought shoes and chappals they had collected, to the BMC headquarters on Thursday.

The BMC conservancy staff’s Jute do warna humse jute le lo propaganda against Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) additional municipal commissioner R A Rajeev for denying them basic facilities like shoes, has now landed them in big trouble. The BMC has strongly reacted to the Kachra Vahatuk Shramik Sangh’s remarks and has approached the Azad maidan police station complaining against the senior members of the Sangh.

According to the BMC, on August 12, the Sangh had put up some posters in the vicinity of the civic body’s headquarters demanding shoes for conservancy workers on contract. The posters carried derogatory remarks against IAS officer Rajiv, stating ‘either you allot us shoes or you will be thrashed with shoes.’  The Sangh alleged that nearly 30 conservancy workers succumb to death due to various diseases every year. The deaths increase every year as the workers have not been provided even the basic safety facilities.


The poster that was part of the campaign of the conservancy staff
On Thursday, many conservancy workers gathered at the BMC head office to hand over shoes and chappals they had collected from across the city. The BMC security and police did not allow them to enter inside the building. So a delegation of workers had a meeting with municipal commissioner Jairaj Phatak to discuss their problems.

Through the posters, the workers complained that their repeated requests for shoes have not been heeded to. They have brought the matter to the notice of their contractor and even BMC officials, but their efforts were in vain.

Milind Ranade, conservancy staff union leader said civic chief Phatak has agreed to their demands. With the agitation, Phatak has ensured within a week, safety gear such as shoes and hand-gloves will be given to the conservancy staff. Beside this, the workers’ salary which was being given in cash, will henceforth be given by cheque with even this year’s diwali bonus being given by cheque.

“I have heard that the BMC officials have registered a police complaint against me. But, I do not care about it as long as I am fighting for the staff,” Ranade added.
 
http://www.mumbaimirror.com/mumbai/others/BMC-objects-to-conservancy-staffs-jutacampaign/articleshow/15842348.cms

WHO ARE WE?

I am writing for those whose voices and words never make it to the surface. It is incessantly drowned among the ripples of artificial noises. I write this not because I feel they need my help, I write because I am one of them. So we write this not as pleaders, we write this with anguish in our hearts.
Who are we?
We are those who have been cleaning your streets for decades, we are those who keep your home clean by plunging into the depths of rotting refuse, we are those who get up every morning to make sure that your water, electricity and machines functions without any interruption. We are those who live by the day, weeks and months because we do not have a future beyond that. We are those 24
who have stopped dreaming of another renaissance. We are those who die every month in living our tryst with destiny, as those relegated to the bottom of human society. We are everywhere but have become invisible to all. We are those who die, and are never reclaimed as men. We are the working-class. - A phrase from dissertation of Ashish Jha (TISS, Centre for Labour Studies)

प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी को एक सफाई कामगार की गुहार -hindi

प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी को एक सफाई कामगार की गुहार
प्रिय प्रधामंत्री जी,
सबसे पहले मैं आपको प्रधानमंत्री बनने पर बधाई देना चाहता हूँ। आपका हमारी तरह एक गरीब घर से ताल्लुक रखने के कारण आपकी जीत ने हमारे अंदर न्याय पाने की एक उम्मीद जगाई है।
मेरा नाम दादराव बाबुराव पाटेकर है तथा मैं मुंबई के चेम्बूर में एक झोपड़पट्टी में रहता हूँ। मैं 1997 से बृहन्मुंबई महानगर पालिका (जो कि हमारे देश की सबसे अमीर महानगर पालिका है) में एक सफाई कामगार के तोैर पर काम करता हूँ। मैं दलित समाज से सम्बन्ध रखता हूँ। मेरे पूर्वज भी इसी काम से सम्बन्ध रखते थे। मैंने महानगर पालिका में 40 रुपए से शुरुआत की तथा १७ सालो की मेहनत के बाद भी मेरी पगार 329 रुपए है। हमें काम पर किसी तरह का सेफ्टी इक्विपमेंट नहीं मिलता। इसके साथसाथ हमें चिकित्सा, भविष्य निर्वाह निधि से भी वंचित रखा जाता है। हमारा काम कचरे से सम्बंधित होने के कारण हमें अक्सर बिमारियों से जूझना पड़ता है। परन्तु हमें महानगर पालिका से किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिलती, हमें बीमार होने की स्तिथि में एक भी छुट्टी नहीं मिलती। मेरे बच्ची पहली कक्षा में है। मैं उसे पढ़ाना चाहता हूँ परन्तु मेरी पगार से घर का खर्च चलना भी मुश्किल है। इससे मेरी बच्ची का भविष्य खतरे में लटका हुआ है। साफ़ सफाई का काम एक अत्यवसायक तथा रोजाना चलने वाला काम है। जिसकी वजह से साफ़ सफाई के काम पर कॉन्ट्रैक्ट कामगारों को रखना एक गैर कानूनी काम है। महानगर पालिका कानून की धज्जिया उड़ाने में जरा भी नहीं हिचकिचाती जिसकी वजह से हजारो दलितों के घर उज्जड जाते है।
हमारे बाकि सफाई कर्मचारी का भी ये ही या इससे भी बुरा हाल है। मुंबई महानगर पालिका में आज भी कामगार किमान वेतन से कम में काम कर रहे है। यहाँ पर सफाई मज़दूरों की हालत बहुत ही दयनीय है। इसलिए मैं आपसे कॉन्ट्रैक्ट माध्यम को सफाई के काम में बंद करने की गुहार करता हूँ। ताकि दलित समाज पर वर्षो से होते आ रहे जुल्म तथा अत्याचार के कहर को रोका जा सके जिससे दलित लोग भी समाज में बाकि लोगों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल सके।

न्याय की उम्मीद रखते हुए देश का एक मूक सेवक

धन्यवाद

प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी को एक सफाई कामगार की गुहार

प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी को एक सफाई कामगार की गुहार

प्रति

मा. प्रधानमंत्री,

सर्व प्रथम मी आपलेप्रधानमंत्रीपदी निवडून आल्याबद्दल अभिनंदन करतो. आपणही एक सर्वसामान्य

कुटुंबातून येतात, त्यामुळेआपण पंतप्रधान झाल्यावर न्याय मिळण्याची एक नवीन उमेद आम्हाला मिळाली

आहे.

माझेनाव दादाराव बाबुराव पाटेकर आहे. मी मुंबईत चेंबूर भागातल्या एका झोपडपट्टीत राहतो. मी १९९७ पासून

बृहन्मुंबई महानगर पालिकेत (जी देशातील सर्वात श्रीमंत महानगर पालिका आहे) सफाई कामगार म्हणून काम

करत आहे. मी एक दलित असून माझेपूर्वजही अशाच प्रकारची कामेकरत. प्रती दिनी मात्र रु४० रोजानेमी ह्या

कामाला सुरुवात केली. आता सुमारे१७ वर्षानंतरही माझा पगार मात्र रु३२९ आहे. आम्हाला कामावर कोणत्याही

प्रकारची सुरक्षा उपकरणेउपलब्ध करून देण्यात येत नाहीत. त्याचबरोबर भविष्य निर्वाह निधी तसेच आरोग्य

सोयी पासूनही आम्हाला वंचित ठेवण्यात येते. आमचेकाम कचऱ्याशी निगडीत असल्यानेआम्हाला नेहमीच

वेगवेगळ्या आजारांचा सामना करावा लागतो. परंतुमहानगर पालिकेकडून ह्या संदर्भात कोणत्याही प्रकारची

आर्थिक सहाय्यता करण्यात येत नाही. आजारपणातही कामावर रजा मिळत नाही. माझी मुलगी पहिल्या वर्गात

शिकत आहे. मी तिला खूप शिकवूइच्छितो. परंतुमाझ्या पगारात मला घरखर्च भागवनही कठिण जात. त्यामुळे

माझ्या मुलीचेभवितव्य धोक्यात आहे. साफ सफाईचेकाम हेअत्यावश्यक व रोज चालणारेकाम आहे. त्यानुसार

ह्या कामावर कंत्राटी पद्धतीनेकामगार नेमनेगैरकानुनी आहे. तरीही महानगर पालिका सर्व कायद्यांना

धाब्यावर बसवून हजारो कामगारांचेशोषण करत आहे.

माझ्या इतर सहकार्यांचेहेच किंवा ह्याहून अधिक वाईट हाल आहेत. मुंबई महानगर पालिकेत आजही कामगार

किमान वेतानाहून कमी पगारावर काम करत आहेत. तरी कंत्राटी पद्धतीनेसफाई काम बंद करण्याची मी

आपणास नम्र विनंती करतो. त्यामुळेदलितांवर पूर्वापार होणाऱ्या अन्यायास रोक बसेल आणि त्यांनाही

समाजातील इतरांशी खांद्याला खांदा लावून विकास करण्याची संधी मिळेल.

न्यायाच्या प्रतीक्षेत देशाचा एक मूक सेवक!

न्याय की उम्मीद रखतेहुए देश का एक मूक सेवक

आपला नम्र,

दादराव बाबुराव पाटेकर

http://www.galli.in/2013/10/search-dignity-justice-sudharak-olwe.html

http://www.galli.in/2013/10/search-dignity-justice-sudharak-olwe.html

बॉम्बे हाई कोर्ट के दलित मज़दूरों की व्यथा

बॉम्बे हाई कोर्ट के दलित मज़दूरों की व्यथा

बॉम्बे high कोर्ट में ६० से अधिक दलित मज़दूर रोजाना साफ़ सफाई का काम करते है। हर जगह की तरह हाई कोर्ट का साफ़ सफाई का काम भी रोजाना नियमित रूप से चलता है परन्तु यहाँ काम करने वाले लोगो का भविष्य केवल एक या दो साल के लिए टिका होता है। मतलब यू की इन लोगो को ठेकेदारो के अन्तर्गत काम करना होता है तथा ठेकेदारो के बदली होने के साथ साथ इन सफाई कामगारों को भी निकाल दिया जाता है। एक अत्यावशयक तथा नियमित रूप से होने वाले काम के कारण सफाईं के काम में कॉन्ट्रैक्ट कामगारों को रखना गैरकानूनी है।
परन्तु हाई कोर्ट ने सब कानूनो की धजिया उड़ाते हुए कामगारों को अस्थाई तोर पर रखा हुआ है। केवल इतना ही नहीं ये सभी कामगार कम से कम मिलने वाली सुविधाओ से भी वंचित है। कॉन्ट्रैक्ट कामगारों को मिलने वाली आधी सुविधाये भी इन्हे नहीं मिलती। बाकि सब सुविधाये पाना तो इनके लिए चाँद पर जाने के बराबर है।
महिला कामगारों को जहाँ मासिक वेतन ५७०० रुपया मिलता है वही पुरुष कामगारों को ६२०० रुपया मिलता है। उच्चतम न्यायालय के अनुसार महिला तथा पुरुष दोनों को सामान काम के लिए सामान वेतन मिलना चाहिए परन्तु यह भी बॉम्बे हाई कोर्ट कानून को नजरअंदाज कर रहा है। मुंबई में मिलने वाला किमान वेतन ३२९ रूपये प्रतिदिन है जो एक महीने का ८५५४ रूपये बनता है। हाई कोर्ट में सफाई का काम करने वाले एक कामगार के शब्दों में " किमान वेतन मिलना हर मज़दूर का हक़ है। पर जब न्याय देने वाले न्यायालय में ही जब मज़दूरों की ये हालत हो तो मज़दूर जाए तो खा जाए। चिकित्सा सुविधा तथा भविष्य निर्वाह निधि जैसी मुलभुत सुविधाये मिलना तो सफाई कामगारों की पहुंच से कोसो दूर है। ज्यादातर मज़दूरों को इन सब सुविधाओं का नाम मजाकिया लगता है। सभी मज़दूरों का काम सुबह ७:३० पर शुरू होता है जो दोपहर को ३:३० पर खत्म होता है। एक महिला मज़दूर पूछने पर अपनी व्यथा इस कदर जाहिर करती है - " मैं रोजाना अपने घर से (जो की टिटवाला में है) सुबह ५:१० की ट्रैन से निकलती हु तथा ७:३० पर मैं हाई कोर्ट पहुचती हूँ। इस पुरे सिलसिले के बावजूद भी मुझे सिर्फ ५७०० रूपये मासिक मिलते है . जिससे मैं पूरी तरह से अपना घर चलाने में असमर्थ हूँ। मैं अपने बच्चो को पढ़ाना लिखाना चाहती हूँ पर इस महंगाई के ज़माने में ये सब असंभव है , लगता है हमारे बच्चो को भी हमारी तरह दर दर की ठोकरे खानी पड़ेगी। बहार वाले लोगो को लगता है की पता नहीं इन लोगो की कितनी पगार है। परन्तु हमारा दुखड़ा सुनकर किसी को यकीन ही नहीं होता।"
ये सभी मज़दूर दलित समाज से तलूक रखते है तथा वर्षो से भारतीय समाज की जटिलता के कारण पीढी दर पीढी इसी काम को करते आये है। परन्तु आज भी इन्ही इनके अधिकार तथा मुलभुत सुविधाओें से वंचित रखा जाता है। बॉम्बे हाई कोर्ट जो पीड़ितों को न्याय देने के लिए जाना जाता है इस कदर अपने कोर्ट के आँगन में काम कर रहे कामगारों को भुखमरी की और धकेल रहा होगा सुनकर यकीन नहीं होता परन्तु मज़दूरों की दयनीय स्तिथि का नजारा रोंगटे खड़ा कर देने वाला होता है।
मेरी बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश से यही गुजारिश है की इन मज़दूरों की हालत पर धयान दे तथा उन पर हो रहे अत्याचार को रोके। 


Baljeet